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लेखनी कहानी -31-May-2023 जादू भरे नैनों वाली लड़की

ऋषभ की जैसे ही आंख खुली तो उसने घड़ी की ओर देखा । "ओह माई गॉड ! नौ बज गये ! बाप रे ! मर गये आज तो" । उसने बिस्तर फेंका और स्प्रिंग की तरह उछल कर सीधा फर्श पर आ गया । फटाफट ब्रश किया और चेहरे पर ड्राईक्लीन किया । जींस और टी शर्ट पहन कर कार की चाबी उठाई और सवा नौ बजे वह अपनी कार के पास आ गया । 

जैसे ही उसने कार का गेट खोला तो उसके मुंह से फिर निकला "ओह माई गॉड ! इसको भी अभी पंक्चर होना था" ? उसने कार का गेट बंद किया और टायर को लात मारकर बाहर आ गया । "इतना टाइम नहीं है मेरे पास जो स्टेपनी चेंज कर लूं । चलो, आज मैट्रो से ही चलते हैं । शाम को जब वापस आऊंगा तब स्टेपनी चेंज कर लूंगा और टायर भी बनवा लाऊंगा" । 
उसने एक ऑटो पकड़ा और मानसरोवर पार्क मैट्रो स्टेशन पर आ गया । वहां से उसने मैट्रो पकड़ी और एक कंपार्टमेंट में चढ गया । 

मैट्रो में लोग भेड़ बकरियों की तरह ठुंसे पड़े थे । ऋषभ भी जैसे तैसे करके खड़ा था । अगले स्टेशन पर जैसे ही मैट्रो रुकी तो ऋषभ का बैलेंस बिगड़ गया और वह अपने आगे खड़ी एक लड़की से टकरा गया । 
"व्हाट ए नॉनसेंस" ? लड़की पीछे मुड़कर चिल्लाई "सीधे खड़े नहीं हो सकते हो क्या" ? 
"सॉरी मिस । वो ब्रेक इतने फास्ट लगे कि मेरा बैलेंस बिगड़ गया । सॉरी अगेन" । ऋषभ ने कह तो दिया मगर उसके नैन उस लड़की के नैनों से जा लड़े थे । उफ ! क्या गजब का आकर्षण था उन आंखों में ? ऋषभ हतप्रभ सा रह गया था । ऐसी नशीली आंखें तो उसने कभी देखी ही नहीं थी आज तक । उन काली काली आंखों ने उस पर इस तरह जादू कर दिया था जैसे कोई जादूगरनी बंगाल का काला जादू कर देती है किसी पर । जादू होने के बाद फिर उसे और कुछ होश नहीं रहता है । जादू भरे नैन देखने के बाद ऋषभ भी बेहोशी की हालत में ही सफर कर रहा था । उसका मन कर रहा था कि उन जादू भरे नैनों को वह एक बार और देखे । इस लोभ से वह खुद को रोक नहीं पाया और वह उस लड़की से सट कर खड़ा हो गया । उसका स्पर्श उसे अच्छा लग रहा था । 

इतने में अगला स्टेशन आ गया और मेट्रो ने फिर से तेज ब्रेक लगाये । इस बार ऋषभ जानबूझकर उस लड़की पर गिरने की एक्टिंग करने लगा । लड़की ने फिर से पलट कर उसे घूरा । 
"हाय , क्या आंखें हैं ! कमल की पखुंड़ियों की तरह । प्रशान्त महासागर की तरह गहरी । काली काली पुतलियों में जैसे सम्मोहित करने की अपार शक्ति भरी हुई हो" । ऋषभ उन दो आंखों में खो गया । उसे कुछ होश नहीं रहा कि वह कहां है और क्या कर रहा है ? 
"ऐ मिस्टर, जरा ठीक से खड़े होइये । अगर खड़ा होने में कोई प्रॉब्लम है तो बैठ जाइये पर मेहरबानी करके मेरे ऊपर मत गिरिये" । गजब का उलाहना दिया था उस लड़की ने । 

ऋषभ ने झेंपकर अपना मुंह दूसरी ओर कर लिया पर वह उससे सट कर ही खड़ा रहा । उसे ऐसा लगा जैसे उसके शरीर में झुरझुरी सी हो रही है । उसका रोम रोम कांप रहा है । वह इस अनुभव का आनंद लेने लगा । बीच बीच में मेट्रो रुकती और ऋषभ उससे और सट जाता पर उसने खुद को उस पर गिरने से बचा रखा था । जैसे ही वह उस लड़की के और नजदीक होता , वह पीछे मुड़कर देखती और उसके देखने के अंदाज से ऋषभ निहाल हो जाता था । ऋषभ ने अभी तक उस लड़की का चेहरा भी नहीं देखा था । वह तो उसके जादू भरे नैनों में ही डूबकर रह गया था । 

उसका स्टेशन आ गया था । वह चाहता था कि जहां तक वह लड़की जायेगी, वह भी वहीं तक चला जाये । पर आज वह पहले से ही लेट था इसलिए आगे जाने को उसके पास समय नहीं था । वह अपने गंतव्य स्थान "नेहरू प्लेस" पर उतर गया और वहां से ऑटो करके ऑफिस आ गया । 

ऑफिस में उसने जैसे ही अपना लैपटॉप ऑन किया स्क्रीन पर उसे वही दो जादू भरी आंखें दिखाई देने लगीं । "उफ्फ ! ये आंखें मुझे जीने नहीं देंगी आज तो" । वह मन ही मन सोचने लगा । "काश कि उन आंखों को वह जिंदगी भर देखता रहता" । उसका दिल धक धक करने लगा था । वह लड़की अगर गलती से दुबारा मिल जाये तो वह उससे कह पाता 
"जादू भरे नैनों वाली सुनो 
यूं छुप छुप के देखा ना करो 
मर जायेंगे हम तेरी कसम 
थोड़ा सा तो हम पर रहम करो" 
पर यह "काश" शब्द बनाया ही ऐसा है जो सिर्फ सपने ही दिखाता है । हकीकत में ऐसा होने नहीं देता है । वह बुझा बुझा सा काम करता रहा । काम में मन था ही नहीं उसका । 

ठीक छ: बजे वह उठने ही वाला था कि उसे बॉस ने बुला लिया और एक अर्जेन्ट रिपोर्ट बनाने को कह दिया । ऋषभ के पास अब कोई विकल्प नहीं बचा था । वह रिपोर्ट बनाने बैठ गया । जब रिपोर्ट बनकर तैयार हुई तो साढे आठ बज रहे थे । वह जल्दी से उठा और भागकर ऑटो पकड़कर नेहरू प्लेस मैट्रो स्टेशन पर आ गया । 

जैसे ही वह प्लेटफार्म पर पहुंचा , उसे सामने से वही जादू भरे नैनों वाली लड़की आती हुई दिखाई दी । उसका दिल धक् से रह गया । उसे विश्वास नहीं हुआ तो उसने दो बार आंखें झपका कर देखा । वही लड़की थी । ऋषभ ने उसका चेहरा अब पहली बार गौर से देखा था । बहुत सुन्दर लड़की थी वह । कुदरत ने शायद उसे फुरसत से बनाया था । उस लड़की ने भी ऋषभ को देख लिया था इसलिए उसके होठों पर एक हल्की सी मुस्कान आ गई थी । क्या गजब का संयोग था । इसकी कल्पना तो ऋषभ ने की ही नहीं थी । उसने मन ही मन बॉस को रिपोर्ट तैयार करने के लिए थैंक्स कहा । यदि वह छ: बजे ही यहां आ जाता तो उसे फिर से  जन्नत के दर्शन कहां नसीब होते ? 

ऋषभ को ज्ञात था कि वह लड़की कम से कम मानसरोवर पार्क तक तो जायेगी ही इसलिए वह उसके जादू भरे नैनों को देखने का लोभ संवरण करने से रोक नहीं सका । वह उसके पीछे पीछे हो लिया । मैट्रो आई । इस बार उतनी भीड़ नहीं थी जितनी सुबह थी । वह उस लड़की के पीछे पीछे मैट्रो में चढ गया । वह लड़की एक जगह जाकर खड़ी हो गई और ऋषभ उसके पीछे जाकर खड़ा हो गया । उस लड़की ने प्रश्नवाचक निगाहों से उसे देखा तो ऋषभ को बड़ा अच्छा लगा । उस लड़की की आंखें विस्मय से फैलकर थोड़ी और बड़ी हो गई थीं । "हाय, कितनी प्यारी आंखें हैं । जी करता है कि इनमें डूबकर मर जाऊं" । ऋषभ के दिल में हिलोरें उठने लगीं । 

सुबह वाली कहानी फिर से दोहराई गई । ऋषभ उस लड़की से एकदम सट कर खड़ा हुआ । यद्यपि भीड़ अधिक नहीं थी , वह थोड़ा दूर भी खड़ा हो सकता था किन्तु ऋषभ जानबूझकर उससे सटकर ही खड़ा हुआ । मैट्रो जब किसी स्टेशन पर रुकती तो ऋषभ थोड़ा सा आगे झुक जाता और उस लड़की पर उसका भार आ जाता था । उस लड़की पलट कर उसे देखा जरूर  लेकिन इस बार वह बोली नहीं । सफर बड़े मजे से कट रहा था ऋषभ का । वह सपनों के सागर में गोते लगाने लगा । 

इतने में मैट्रो के माइक से आवाज आई  "द नेक्स्ट स्टेशन इज मानसरोवर पार्क" । ऋषभ सतर्क हो गया । उसका स्टेशन आ गया था । वह उतरने वाला ही था कि उसके दिल ने कहा "जब तुझे सफर में आनंद आ रहा है तो इस आनंद को वहां तक ले जा जहां तक ये मिलता रहे" । ऋषभ ने अपना इरादा बदल दिया । वह मानसरोवर पार्क स्टेशन पर उतरा ही नहीं । लड़की शहीद नगर स्टेशन पर उतरी तो वह भी वहीं उतर गया और वहां से ऑटो लेकर अपने घर आ गया । इस चक्कर में रात के दस बज गये । वह उन जादू भरी आंखों की गहराइयों में तैर रहा था तो फिर वह गाड़ी की स्टेपनी कैसे बदलता ? गहराइयों में तैरने वाला इंसान स्टेपनी थोड़ी ना बदलता है ? वह तो उन अथाह गहराइयों में ही डूबे रहना चाहता है । 

उसने देखा कि घर पर टिफिन आया हुआ पड़ा है पर आज उसका टिफिन वाले खाने का मूड नहीं था । आज तो उसे तड़क भड़क वाला खाना चाहिए था । उसने ऑनलाइन खाना मंगवा लिया और खाना खाकर सो गया । दिन भर का थका हुआ था इसलिए तुरंत नींद भी आ गई । 

अगले दिन भी उसे मैट्रो से ही जाना था । स्टेपनी लगी ही नहीं थी तो कार से कैसे जाता ? फिर उसे मैट्रो से जाने की इच्छा भी थी । क्या पता आज भी उससे मुलाकात हो जाये ? वह बड़ी आशा के साथ एक कंपार्टमेंट में चढ गया । वहां वह लड़की नहीं थी । वह उसे तलाश करता रहा । उस कंपार्टमेंट में वह भीड़ को चीरता हुआ आगे बढता रहा और उस लड़की को ढूंढता रहा मगर वह लड़की उसे नहीं मिली । वह लास्ट के कंपार्टमेंट तक ढूंढ आया लेकिन उसकी सारी मेहनत बेकार हो गई । अब तो बस आगे का ही एक कंपार्टमेंट बच गया था । क्या वह उसमें हो सकती है ? दिल ने कहा कि एक बार ट्राई मारने में हर्ज ही क्या है ? क्या पता वह उसमें हो ? उसने पहले कंपार्टमेंट में जाने का मन बना लिया पर पूरी गाड़ी को क्रॉस करना बहुत मुश्किल था । अब क्या करें ? 

वह अगले स्टेशन पर उतर गया और दौड़कर पहले कंपार्टमेंट में चढ गया । मेहनत करने वालों की आखिर जीत हो ही जाती है । वह गेट के सामने वाली सीट पर ही बैठी थी । ऋषभ की उससे आंखें चार हुई और वह हौले से मुस्कुरा दी । ऋषभ को जैसे सातों आसमान मिल गये थे । वह भी उसके सामने ही खड़ा हो गया और बीच बीच में उसे देखने भी लगा । वह भी बीच बीच में उसे देख लेती थी और दोनों की आंखें एक दूसरे से टकरा जाती थी । जैसे ही दोनों की आंखें मिलतीं वैसे ही उनके अधर फैल जाते थे । उसे पता ही नहीं लगा कि नेहरू प्लेस स्टेशन कब आ गया । उसके आश्चर्य का ठिकाना उस समय नहीं रहा जब उसने उस लड़की को नेहरू प्लेस स्टेशन पर ही उतरते देखा था । वह यहां भी उसके पीछे पीछे हो लिया । 

वह एक ऑटो से चली गई थी । ऋषभ भी अपने ऑफिस आ गया । आज उसे अंदर से एक खुशी सी मिल रही थी । यह खुशी क्यों महसूस हो रही थी , उसे खुद मालूम नहीं था । वह आज तरोताजा सा रहा था दिन भर । उसकी आंखों के सामने वो हसीन चेहरा घूम रहा था । उसकी महक से शायद वह तरोताजा हो रहा था । अब तो शायद उसका कार से आना बंद हो गया है ? उसके होठों पर एक मुस्कान तैर गई । कार से क्या "उसके" दर्शन होंगे ? मैट्रो ही एक तरीका है "देवी" के दर्शन का । चलो, "मैट्रो इश्क" का मजा लिया जाये । 
शाम को छ: बजे उसका काम खत्म हो गया । वह सोचने लगा कि कल तो वह साढे आठ बजे वाली मैट्रो में मिली थी तो आज अभी कैसे मिलेगी ? उसने अपने सिर पर एक हलकी सी चपत लगाई और मन ही मन बोला "साले, ज्यादा लालच मत कर । जितना मिले उतने में ही संतोष करना सीख" । 

वह अपने ही विचारों में खोया खोया नेहरू प्लेस मैट्रो स्टेशन पर आ गया । जब वह प्लेटफार्म पर पहुंचा तो उसे सामने से आती हुई वही लड़की दिखाई दी । "हे भगवान ! लगता है कि तू हमारी जोड़ी बनवा कर ही मानेगा । तुझे लाख लाख शुक्र है प्रभु । चुपड़ी और दो दो दे रहा है तू तो । कृपा बनाए रखना प्रभु" । उसने उसे देखकर एक स्माइल उछाली जिसे उस लड़की ने कैच कर लिया और बदले में उसने एक छोटी सी स्माइल भेज दी । ऋषभ की दुनिया आबाद हो गई थी । 
दोनों पास पास खड़े हो गये । कभी कभी दोनों के बदन एक दूसरे को छू जाते थे तो ऋषभ को सिहरन सी हो जाती थी । 

इतने में एक मैट्रो आ गई । वह पहले से ही ऑवर क्राउडेड थी । उसे देखकर वह बोली "इसमें जगह कहां है" ? 
"डोन्ट वरी , आई विल मैनेज" । ऋषभ बहादुरों की तरह बोला "जस्ट फॉलो मी" । और वह गेट के साइन पर खड़ा हो गया । 

जैसे ही मैट्रो रुकी , लोगों का रेला उसमें चढने को हुआ । ऋषभ ने अपनी ताकत से इतनी जगह बना ली थी कि वह अंदर घुस सके । उसने अंदर जाकर हाथ बढाकर उस लड़की को पकड़कर खींच लिया । वह उसके ऊपर गिर सी पड़ी । उसके कोमल अंगों का स्पर्श बहुत प्यारा था । काश , ऐसा बार बार हो , वह सोचने लगा । भीड़ के कारण ढंग से खड़े होने की जगह भी नहीं थी इसलिए उन दोनों की सांसें टकरा रही थी । उन सांसों की महक में ऋषभ खो गया । कब स्टेशन आया, पता ही नहीं चला । जब वह लड़की उतरी तो उसके साथ ही ऋषभ भी उतरा । उसने हिम्मत करके "बाय" बोला तो उस लड़की ने भी मुस्कुरा कर जवाब दे दिया । ऋषभ ऑटो से अपने घर आ गया । 

अब तो उसका सफर मैट्रो से तय हो गया था । तीसरे दिन वह लड़की मिली ही नहीं थी उसे । "वह भी कितना पागल है । ना तो नाम पूछा और ना ही मोबाइल नंबर लिया उसका" ऋषभ ने अपना माथा पीट लिया । अब तो शाम की मैट्रो से ही कुछ उम्मीद है । 

ऑफिस का काम खत्म करके वह बड़ी उम्मीद से स्टेशन आया पर यहां उसे वह लड़की दिखाई नहीं दी । वह बेचैन सा उसे इधर उधर ढूंढने लगा लेकिन वो हो तो मिले ? इतने में मैट्रो आई लेकिन वह उसमें चढ़ा ही नहीं । उसे लगा कि हो सकता है वह थोड़ी लेट हो गई हो ? उसने एक एक करके चार मैट्रो निकाल दी मगर वह लड़की नहीं आई । बुझे मन से वह अपने घर चला गया । 

रात में उसकी मम्मी का फोन था कि उसकी तबीयत जरा खराब है तो उसने मम्मी को कह दिया कि वह दिल्ली ही आ जाये, यहीं चैक अप करवा लेंगे । सुबह ऋषभ की मम्मी आ गई । उसने एक दिन की छुट्टी ले ली थी । वह मम्मी को लेकर सफदरजंग अस्पताल में चला गया और उन्हें एक फिजीशियन को दिखाया । डॉक्टर ने कई तरह की जांचें लिख दी थी तो वह उन्हें कराने लग गया । पूरा दिन इसी भागदौड़ में निकल गया था । उसने कुछ भी नहीं खाया था । 
वह मम्मी को लेकर कैन्टीन में आ गया । कैन्टीन में उसे वही लड़की दिखाई दे गई  । उसने उस लड़की को जब वहां देखा तो उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा । वह स्नैक्स ले रही थी । उसके पास में एक छोटी बच्ची भी थी जिसे वह केक खिला रही थी । "कौन है यह लड़की ? क्या इसकी बेटी है" ? सोच सोच कर उसकी धड़कनें बढने लगीं । 

दोनों की नजरें जब मिलीं तो वह लड़की मुस्कुरा दी लेकिन ऋषभ के अधरों से मुस्कान गायब हो गई । वह लगातार उस बच्ची को देखे जा रहा था । वह लड़की उसकी जिज्ञासा समझ गई और बोली "हैलो मिस्टर । मीट माई डॉटर मीशा" । फिर वह अपनी बेटी की ओर देखकर उससे बोली "अंकल को हैलो करो बेटे" । मीशा ने बड़ी बड़ी आंखें करके मुस्कुरा कर कहा "हैलो अंकल" । 

ऋषभ आसमान से सीधा जमीन पर धड़ाम से गिरा । उसकी दुनिया बनने से पहले ही उजड़ गई थी । ऋषभ बिना कुछ बोले और बिना कुछ खाये पीये वहां से अपनी मम्मी को लेकर चला गया । उसे अपने आप पर बहुत गुस्सा आ रहा था । "बिना कुछ जाने पहचाने दिल लगाने का परिणाम यही होता है" । पर अब क्या हो सकता है ? अब तो दिल में दर्द के सिवा कुछ नहीं है । वह मम्मी को लेकर घर आ गया । 

मम्मी की सारी रिपोर्ट आ गईं । बी पी की प्रॉब्लम थी । डॉक्टर ने दवाइयां लिख दी और दो महीने बाद दिखाने के लिए कहा । ऋषभ की मम्मी वापस चली गई । ऋषभ ने अब गाड़ी ठीक करा ली । "मैट्रो में धक्के क्यों खायें  ? अपनी गाड़ी का मजा ही कुछ और है" । उसे मैट्रो से घृणा हो गई थी । "मैट्रो की सवारी भी कोई सवारी है क्या ? भेड़ बकरियों की भी कोई कीमत होती है पर मैट्रो में सवारियों की कोई कीमत नहीं होती है" । उसे अपने आप पर गुस्सा आने लगा । उस दिन वह देर से नहीं जगता तो आज उसका दिल खून के आंसू नहीं रोता । वह लाख कोशिश करता मगर उसकी आंखों के सामने से वो दो जादू भरे नैन हटते ही नहीं थे । वह पागल सा हो गया । 

तीन चार दिन बाद वह अपने दोस्त के घर बैठा था । अचानक उसके दोस्त प्रियांश के मोबाइल पर एक वीडियो कॉल आने लगी 
"सॉरी यार, मेरी बॉस का फोन है । बस एक मिनट" । उसका दोस्त अपनी बॉस से बातें करने लगा । ऋषभ की निगाह उसके बॉस पर पड़ी तो वह अवाक् रह गया । यह तो वही लड़की थी जो उसे मैट्रो में मिली थी । उसका दिल फुदकने लगा । करीब दो मिनट बात की थी उसके दोस्त ने उससे । जैसे ही उसकी बातें बंद हुईं ऋषभ ने प्रश्नों की बौछार कर दी "कौन थी वह लड़की ? क्या नाम है उसका ? कहां रहती है ? वगैरह वगैरह" । 
उसका दोस्त प्रियांश बोला "मेरी बॉस श्रुति है । शहीद नगर मैट्रो स्टेशन के पास रहती है । और कुछ जानना चाहता है क्या" ? 

ऋषभ को सारी घटना याद आ गई । वह उस लड़की के साथ शहीद नगर स्टेशन तक गया था और वहां से ऑटो से अपने घर गया था दो दिन । लड़की तो वही है । क्या नाम बताया था इसने ? हां, याद आया "श्रुति" नाम बताया था । झट से उसने पूछ लिया "इसकी शादी कब हुई" ? 

ऋषभ के इस प्रश्न पर प्रियांश चौंका । "शादी ? किसकी शादी" ? 
"तेरी बॉस की, और किसकी" ? ऋषभ ने कहा 
"पागल है क्या तू ? उसकी शादी कहां हुई है अभी" ? घोर आश्चर्य से प्रियांश ने कहा 
"क्या ? उसकी शादी नहीं हुई है अभी तक" ? कहते कहते ऋषभ की खुशी उसकी आंखों से छलकने लगी । 
"साले, तू इतना खुश क्यों हो रहा है ? तुझे इसमें इतना इंटरेस्ट क्यों है" ? 
"वो बाद में बताऊंगा । पहले यह बता कि यदि इसकी शादी नहीं हुई है तो इसके साथ एक छोटी बच्ची कौन रहती है" ? 

प्रियांश ने कुछ याद करने की कोशिश की और कहा "अरे,  मीशा ? हां, वह इसकी बेटी ही है । मेरा मतलब है कि रीयल में इसको बेटी नहीं है । एक दिन इसे वह बच्ची रास्ते में पड़ी हुई मिली थी और इसने उसे एडप्ट कर लिया । पर तू यह सब क्यों पूछ रहा है" ? अब प्रियांश ने चौंककर पूछा था ऋषभ से । 
"बड़ी लंबी कहानी है यार । कभी फुरसत से बताऊंगा । तू उसका मोबाइल नंबर तो दे मुझे" ऋषभ जल्दी से बोला 
"क्यों , क्या करेगा तू उसके मोबाइल नंबर का" ? 
"मोबाइल नंबर का क्या किया जाता है, ये भी बताना पड़ेगा क्या ? बात ही करूंगा और क्या करूंगा" । ऋषभ अब मुस्कुरा कर बोला । 

प्रियांश ने उसे श्रुति का मोबाइल नंबर दे दिया । ऋषभ ने प्रियांश के सामने ही उसे फोन लगा दिया । 
"हैलो" उधर से आवाज आई 
"हैलो मिस । मैं ऋषभ बोल रहा हूं । वही ऋषभ जो आपको मैट्रो में मिला था । जब ट्रेन रुकी थी तो मैं आपके ऊपर लगभग गिर ही पड़ा था । एक दिन सफदरजंग अस्पताल की कैन्टीन में भी मिला था । पहचाना" ? 
"हां हां, पहचान लिया । कैसे हैं आप और आज कैसे फोन किया आपने" ? 
"मैं आपसे मिलना चाहता हूं । क्या आप मुझसे मिलना पसंद करेंगी" ? ऋषभ थोड़ा सकुचाते हुए बोला 
"हां हां, क्यों नहीं" 
"कब और कहां मिलना पसंद करेंगी आप" ? 
"अगर कोई प्रॉब्लम ना हो तो मेरे घर पर आ जाओ" । 
"कब" ? 
"अअ, अभी आ जाओ चाहे" 
"ओके , आई एम कमिंग । काइन्डली सैण्ड योअर लोकेशन" । ऋषभ बल्लियों उछलते हुए बोला । 
ऋषभ ने प्रियांश को बाहों में भर लिया और उसे बेतहाशा चूमने लगा । प्रियांश उससे छिटक कर दूर हो गया और बोला "पागल हो गया है क्या तू ? साले तू कब से 'गे' बन गया" ? अब प्रियांश के चेहरे पर भी मुस्कान थी । 
"अरे पूछो ही मत यार । देख तेरी बॉस से मेरा चक्कर चल रहा है । आज फाइनली सब कुछ सैटल कर आऊंगा" । कहकर ऋषभ दौड़कर अपनी कार में जा बैठा और कार शहीद नगर की ओर दौड़ चली । 

थोड़ी देर में वह श्रुति के घर पर था । उसने कॉल बेल बजाई तो दरवाजा श्रुति ने ही खोला "वेलकम मिस्टर ऋषभ" 
"थैंक्स मिस श्रुति" । कहकर ऋषभ एक सोफे पर बैठ गया । थोड़ी देर तक घर में शांति छाई रही । अचानक ऋषभ खड़ा हुआ और श्रुति के सामने प्रपोज करने की मुद्रा में बैठकर बोला "आई लव यू श्रुति । डू यू लव मी" ? 

ऋषभ के अचानक इस तरह से प्रपोज करने से श्रुति खिलखिलाकर हंस पड़ी और कहने लगी "पहले मुझे अपनी मम्मी से पूछना पड़ेगा" और वह जोर से हंस दी । 
"मम्मी ? कैसी मम्मी" ? ऋषभ ने हतप्रभ होकर पूछा 

श्रुति कमरे में गई और अपने साथ मीशा को ले आई और बोली "ये मेरी मम्मी है, इससे पूछना पड़ेगा" । वह फिर से खिलखिला पड़ी । फिर उसने मीशा से पूछा "बोलो मम्मी , तुम्हें ये लड़का पसंद है क्या" ? 
इस पर मीशा हंस पड़ी और बोली "बिल्कुल पसंद है । कब करवा रही हो इनसे मेरी शादी" ? कहकर मीशा अंदर भाग गई । श्रुति उसके पीछे पीछे दौड़ी और चिल्लाई "रुक बदमाश, मैं कराती हूं तेरी शादी इनसे" । 
ऋषभ को आखिर जादू भरे नैनों वाली लड़की मिल ही गई । 
श्री हरि 
31.5.2023 


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3 Comments

KALPANA SINHA

03-Jul-2023 01:33 PM

v.nice

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वानी

01-Jun-2023 07:17 AM

Nice

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Hari Shanker Goyal "Hari"

01-Jun-2023 08:31 AM

🙏🙏

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